पूरे देश में झारखंड और मप्र ऐसे राज्य हैं जहां जीनोम सिक्वेंसिंग की एक भी लैब नहीं हैं

BHOPAL – पूरी दुनिया में दहशत का दूसरा नाम बन चुका कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ‘ओमिक्रॉन’ को लेकर रोजाना नए हैरान करने वाले खुलासे हो रहे है … दक्षिण अफ्रीका में मिले इस वैरिएंट को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘वैरिएंट ऑफ कंसर्न’ की कैटेगरी में रखा है … ओमिक्रॉन कोरोना के पुराने डेल्टा वैरिएंट से भी ज्यादा खतरनाक है … यह तेजी से लोगों को संक्रमित करता है … जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए ही ‘ओमिक्रोन’ वैरिएंट की पहचान हो सकती हैं … कोरेाना का नया स्ट्रेन ओमीक्रोन के सैंपल की जांच के लिए मप्र से नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की दिल्ली और एनआईवी पुणे सैंपल भेजना पड़ता हैं … इसमें काफी समय लगता हैं …पूरे देश में जीनोम सिक्वेंसिंग की 38 लैब हैं … केवल झारखंड और मप्र ऐसे दो राज्य हैं … जहां जीनोम सिक्वेंसिंग की एक भी लैब नहीं हैं … दिल्ली में जीनोम सिक्वेंसिंग की 4 लैब हैं … जिनमें से 2 केंद्र सरकार और 2 दिल्ली की राज्य सरकार की लैब हैं … गुजरात में 4 महीने पहले और राजस्थान में 2 महीने पहले … जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन लग चुकी है और … जांच भी होने लगी … भोपाल एम्स में जिनोम सीक्वेंसिंग टेस्ट के लिए … लैब 6 महीने पहले बन चुकी लेकिन … जरूरी उपकरणों के अभाव में यह लैब अनुपयोगी साबित हो रही है … पूरे देश में जीनोम सिक्वेंसिंग की 38 लैब हैं … झारखंड और मप्र ऐसे राज्य हैं जहां … जीनोम सिक्वेंसिंग की एक भी लैब नहीं हैं … दिल्ली में जीनोम सिक्वेंसिंग की 4 लैब हैं … जिनमें से 2 केंद्र सरकार और 2 दिल्ली की राज्य सरकार की लैब हैं … ओमिक्रोन वैरिएंट के मरीज बढ़ने पर मध्यप्रदेश में खासी दिक्कतें हो सकती हैं … जैसे किसी आदमी का बायोडाटा होता है… ठीक उसी तरह से जीनोम सिक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है … किसी भी वायरस में डीएनए और आरएनए जैसे कई तत्व होते हैं … जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए इनकी जांच की जाती है कि … ये वायरस कैसे बना है और … इसमें क्या खास बात अलग है … उस खास बात का स्पेस क्या है और … पदार्थ के बीच में दूरी किस तरह की है … सिक्वेंसिंग के जरिए ये समझने की कोशिश की जाती है कि … वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ … अगर म्यूटेशन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुआ हो, तो … ये ज्यादा संक्रामक होता है … जैसा कि ओमीक्रॉन के बारे में कहा जा रहा है … स्पाइक प्रोटीन कोरोना वायरस की कांटेदार संरचना होती है … इधर केंद्र सरकार ने भोपाल में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के तहत हाई सिक्यूरिटी बायो सेफ्टी लैब स्थापित करने की योजना बनाई थी … लेकिन धरातल पर अभी तक योजना साकार रूप ही नहीं ले पाई … इसके लिए बजट में 350 करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया गया है … जिला प्रशासन ने भोपाल के भौरी, भेल और भदभदा इलाके में 15 एकड़ जमीन देने पर सहमति भी दे दी थी …

-जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए ही ओमिक्रोन वैरिएंट की पहचान होती हैं
– भोपाल एम्स में जिनोम सीक्वेंसिंग टेस्ट के लिए लैब 6 महीने पहले बन चुकी
– भोपाल एम्स में जरूरी उपकरणों के अभाव में लैब अनुपयोगी साबित हो रही
– पूरे देश में जीनोम सिक्वेंसिंग की 38 लैब हैं
– गुजरात में 4 और राजस्थान में 2 महीने पहले जिनोम सीक्वेंसिंग मशीन लग चुकी, जांच भी होने लगी
– पूरे देश में झारखंड और मप्र ऐसे राज्य हैं जहां जीनोम सिक्वेंसिंग की एक भी लैब नहीं हैं
– केंद्र ने भोपाल में हाई सिक्यूरिटी बायो सेफ्टी लैब स्थापित करने की योजना बनाई थी
– हाई सिक्यूरिटी बायो सेफ्टी लैब धरातल पर अभी तक आकार ही नहीं ले पाई
– ओमिक्रोन वैरिएंट के मरीज बढ़ने पर मप्र में खासी दिक्कतें हो सकती हैं