पूर्वोत्तर में भारी विरोध के बावजूद सरकार आज पेश करेगी नागरिकता संशोधन बिल

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर लगातार विरोध जारी है. पूर्वोत्तर के दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में अपनी आवाज उठाई और केंद्रीय गृह मंत्री से इसे पारित नहीं करने की गुहार लगाई है. इसके अलावा बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के कई सहयोगी दल भी इस विधेयक के विरोध में हैं. इन सबके बीच नरेंद्र मोदी सरकार मंगलवार को राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को पेश कर सकती है.नागरिकता संशोधन विधेयक को राज्यसभा की मंगलवार की कार्यसूची में रखा गया है. इससे माना जा रहा है कि सरकार इस विधेयक को राज्यसभा में पेश कर सकती है. हालांकि इस विधेयक को लेकर बीजेपी के अलावा सभी दल विरोध में हैं.असम में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में असम गण परिषद ने एनडीए सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. मेघालय में एनडीए के घटक दल और नेशनल पीपुल्स पार्टी भी विरोध कर रही है. मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, मणिपुर में एनडीए के घटक दलों ने अपना विरोध केंद्र सरकार को बता दिया है.एनडीए के दो बड़े घटक दलों जेडीयू और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी सिटिजन बिल को लेकर कई बार अपनी नाराजगी पीएम मोदी, अमित शाह और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बता चुके हैं.पूर्वोत्तर के दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू और मणिपुर के एन बीरेन सिंह ने सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में अपनी आवाज उठाई और राज्यसभा में इसे पारित नहीं करने की गृह मंत्री राजनाथ सिंह से अपील की.बीजेपी के दोनों मुख्यमंत्रियों ने 30 मिनट की बैठक के दौरान गृह मंत्री को पूर्वोत्तर की मौजूदा स्थिति के बारे में अवगत कराया, जहां इस विधेयक के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. एक अधिकारी ने बताया कि दोनों मुख्यमंत्रियों ने गृह मंत्री से अनुरोध किया कि पूर्वोत्तर के लोगों को नागरिकता संशोधन विधेयक पर राजी करने से पहले इसे पारित नहीं कराया जाए. साथ ही उन्होंने पूर्वोत्तर के लोगों की सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान के संरक्षण की भी मांग की.अधिकारी ने बताया कि गृहमंत्री ने मुख्यमंत्रियों को चिंता न करने को कहा और आश्वासन दिया कि पूर्वोत्तर के मूल निवासियों के अधिकारों को कमजोर नहीं किया जाएगा.बता दें कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय महज छह साल भारत में गुजारने और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी