UMESH NIGAM
भोपाल : जिन नगरीय निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, सरकार वहां प्रशासकीय समिति बनाकर उसकी कमान उसके पिछले महापौर या अध्यक्ष को सौंपने की तैयारी कर रही है। इसके लिए समानांतर रूप से नगर पालिक निगम एक्ट में संशोधन की कवायद भी चल रही है। निकाय में पार्षद रहे लोगों को समिति में सदस्य बनाया जा सकता है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने शुक्रवार को ही जिला व जनपद पंचायतों में प्रशासकीय समिति बनाकर कार्यकाल समाप्ति के समय उसके अध्यक्ष रहे व्यक्ति काे उसका प्रधान बनाने का आदेश जारी किया है। इसके बाद नगरीय निकायों में भी ऐसी व्यवस्था की सुगबुगाहट शुरू हो गई। कई पूर्व महापौर, अध्यक्षों व पार्षदों ने भी निकायों में इसकी मांग की है। अब प्रशासन स्तर पर भी कागजी कार्यवाही चल पड़ी है। उच्च स्तर पर मिले निर्देश के बाद नगरीय विकास एवं अावास विभाग में इसका मसौदा तैयार हो रहा है। विभाग के कर्मचारी शनिवार सुबह से इसमें जुटे रहे। इसके लिए अधिनियम की धारा 328 व 423 में प्रावधान हैं। उसके आधार पर प्रशासक या प्रशासकीय समिति गठित करने की व्यवस्था है। इसमें जो भी संशोधन करने हैं, उसकी कार्यवाही चल रही है। विधि विभाग की मंजूरी के बाद इन संशोधनों को अध्यादेश के माध्यम से लागू किया जा सकता है। नगर निगम में महापौर रहे और नगर पालिका व नगर परिषद में अध्यक्ष रहे व्यक्ति प्रशासकीय समिति के प्रमुख के रूप में एक तरह से महापौर व अध्यक्ष की हैसियत से ही काम करेंगे। सरकार अपनी इच्छानुसार पूर्व पार्षदों को भी समिति में सदस्य बना पाएगी।प्रदेश के अधिकतर नगरीय निकायों में भाजपा के ही महापौर या अध्यक्ष थे। प्रशासकीय समिति बनने से उसे फायदा होगा। सभी 16 नगर निगमों में भाजपा के महापौर थे। इनमें से उज्जैन व मुरैना के महापौर का कार्यकाल सितंबर तक है, बाकी का कार्यकाल खत्म हो गया है। एेसे में प्रशासकीय समिति के माध्यम से वह आगामी चुनाव में लाभ की स्थिति में रहेगी।